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गंगा सप्तमी: स्वर्ग से शिव जटाओं तक, पुनर्जन्म का पावन पर्व
By Lokjeewan Daily - 13-05-2025

मुंबई। भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा का आध्यात्मिक महत्व अद्वितीय है। गंगा सप्तमी का पर्व गंगा नदी के स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुंचने की तिथि के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन मां गंगा का पुनर्जन्म हुआ था, इसलिए इसे गंगा जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, पृथ्वी पर मां गंगा का पहला अवतरण गंगा दशहरा के दिन हुआ था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि जह्नु ने क्रोधित होकर गंगा के पूरे जल को पी लिया था। देवताओं और राजा भागीरथ की प्रार्थना पर, ऋषि जह्नु ने गंगा सप्तमी के दिन गंगा के जल को मुक्त किया। इसी घटना के स्मरण में गंगा सप्तमी को मां गंगा के पुनर्जन्म के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। ऋषि जह्नु के कान से प्रवाहित होकर पुनर्जन्म लेने के कारण, इस दिन मां गंगा के जाह्नवी स्वरूप की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
मान्यता है कि गंगा सप्तमी पर गंगा का पूजन और पवित्र स्नान करने से यश, धन और सम्मान की प्राप्ति होती है। मां गंगा तीनों लोकों में अपने भक्तों को पापों से मुक्ति प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। स्वर्ग में मां गंगा को मंदाकिनी और पाताल लोक में भागीरथी के नाम से पुकारा जाता है। गंगा सप्तमी का यह पावन पर्व गंगा नदी के महत्व और उसकी पवित्रता को दर्शाता है। यह दिन भक्तों के लिए मां गंगा के प्रति अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर होता है।
गंगा नदी न केवल भारत की जीवनदायिनी है, बल्कि यह करोड़ों लोगों की आस्था और संस्कृति का भी प्रतीक है। गंगा सप्तमी का उत्सव इस पवित्र नदी के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस दिन भक्त गंगा घाटों पर एकत्रित होकर विशेष पूजा और आरती में भाग लेते हैं। यह पर्व हमें जल के महत्व और नदियों को स्वच्छ रखने की हमारी जिम्मेदारी का भी स्मरण कराता है।

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